"कुछ तो लोग कहेंगे लोगों का काम है कहना" ये जो कुछ अल्फ़ाज़ है जो किसी ने सोच समझ कर कहे है जो ज़िंदगी मे उतरते चले जाते है लोगों से ही तो हमारा अस्तितव है वरना जब हम अकेले हो तो कौन हमे पहचानेगा। ज़िंदगी कभी कभी हमे दोराहे पर ला कर खड़ा कर देती है जब हमे अच्छे और बुरे मे कोई फर्क नही कर पाते तब हम एक रास्ता चुनते है और उस रास्ते पर चल पड़ते है। तब लोग ही तो उस रास्ते को सही या गलत ठेहराते है और हमे भी। कई लोग ज़िंदगी मे एक फरिश्ते की तरह आते है और हमे ऐसी उचाइयों पर ले जाते है जहाँ पर जाने के बारे में हमने सिर्फ सोच रखा है और कई लोग ऐसे भी आते है जो हमे संकट में डाल देते हैं जिससे उभरना बहुत मुश्किल होता है हमारी ज़िंदगी में कितनी बार ऐसा वक़्त भी आता है जब हम अकेले पड़ जाते है और तब लोग ही तो हमे सहारा देते है जो हमारे अपने कहलाते हैं ये वक़्त ही तो है जो हमे लोगों के हर चेहरे से रूबरू करवाता है हमे ये दिखाता है कि लोगों के उपरी चेहरे के पीछे और भी कितने चेहरे छिपे हुए है जिसे हम कभी कभी देखते हुए भी अंदेखा कर देते है लोग जो बेवजह किसी को राय देते हैं जबकि हमें उसकी जरूरत तक नही होती है ये बेवजह की राय कभी कभी आपको वो करने पर मजबूर कर देती है जो आप कभी नही करना चाहते, पर लोग कभी कभी आपको उन चीजों से मिलवाते हैं जो आपने कभी सोचा भी न हो फिर चाहे वो चीज आपके लिए अच्छी हो या बुरी।कभी कभी कुछ लोगों के बीच आप अपना परिचय तक नही दे पाते तो वही लोग आपको मानसिक रूप से मज़बूत बनाते हैं और भीड़ में खुद की पहचान बनाने के काबिल बनाते हैं तब कही दिल से ये आवाज आती है- "न तुम मेरे हो न मे तुम्हारा फिर भी यह ज़िंदगी हमारे साथ से चली जा रही है , जैसे हर सिक्के के दो पहलु होते हैं वैसे ही हर इंसान के भी दो रूप होते हैं एक अच्छा एक बुरा। यह आप पर निर्भर करता है की आपने लोगों का कौन सा रूप पहले देखा है क्योंकि हम उसपर जल्दी विश्वास कर लेते हैं जो हमने पहले देखा है फिर उसी चीज़ पर दोबारा अपनी राय बदलने में हमे थोड़ा वक़्त और लगता है हम अपनी ज़िंदगी में कुछ भी करे लोग उसके बारे में कुछ न कुछ कहेंगे ही इसिलिए वही करें जो आपके लिए सही है और जो आपको सही लगता है कभी कभी लगता है कि हमारी अपनी ज़िंदगी हमारी नही है क्योंकि इस पर लोगों का हक है कुछ करो तो भी यही बात कि लोग क्या कहेंगे कुछ न करो तो भी यही डर लोग क्या कहेंगे।कभी कभी लगता है कि लोगों को दूसरों की ज़िंदगी में इतनी दिलचस्पी क्यो है और कहीं न कहीं हमारी मानसिकता भी ऐसी ही हो गयी है सच तो यह है कि हम भी भेड़ चाल में चल पड़े हैं । लोगों ने मिलकर जो समुदाय बनाया है उससे उन्नति तो हुई परन्तु प्रकृति के साथ भी बहुत खिलवाड हुआ है प्रकृति को इतना नुकसान पहुंचाया गया है कि माँ प्रकृति हमसे उन चीज़ों की भरपाई कर रही है। जब तक इन बातों को हम समझेंगे तब तक माँ प्रकृति बहुत कुछ बदल चुकी होगी। ये जो भी आपदा पूरे संसार में छायी हुई है वह हम लोगों के वजह से ही तो हुई है हम लोगों ने ही तो इस विषय को गंभीरता से नहीं लिया मनुष्य ईश्वर की एक खूबसूरत रचना है पर हम लोगों ने इस खूबसूरती को खत्म कर दिया है औद्योगीकीकरण के दौर में हम लोग अपनी इंसानियत ही भूलते जा रहे हैं जो हमे मानवता से दूर करता जा रहा है। ऐसी उन्नति का क्या फायदा जब हम सबका सम्मान करना भूल जाएं जब हम लोग एक दूसरे का हाल चाल पूछना भूल जाएं जब हम अपने परिवार के साथ बैठ कर खाना भी ना खा पाएँ। जब हम लोगों की तकलीफ मे उनका साथ न दे पाएँ जब हम लोगों की उन्नति से खुश न हो पाएँ जब हमे लोगो से इर्ष्या होने लगे बस तो यह उन्नति हमारे किसी काम की नही। वक़्त के साथ हर चीज बदल रही है और हमारे लिए ये बदलाव भी जरूरी है क्योंकि बदलाव से ही हम अपनी सोच को भी बदल सकते है। पहले के लोगों का व्यवहार कितना अलग था वे कितने शांत थे दयालु थे और अभी की पीढ़ी एक दम अलग है बात जब पीढ़ियों की हो ही रही है तो हमे अपने बुजुर्गो से पहले की पीढ़ी के किस्से सुनने चाहिए पहले की परम्परा के बारे में जानना चाहिए अभी की पीढ़ी और पहले की पीढ़ी में तुलना करनी चाहिए, यह जानने की कोशिश करनी चाहिए की धीरे धीरे हमारी सभ्यता में कितना बदलाव आया है हम कितने बदल गये है कोशिश करो की हम भी हमारे आगे आने वाली पीढ़ी के लिए एक अच्छा उदाहरण बने । हम उन लोगों की बातों में न आएँ जिनकी मानसिकता गलत है क्योंकि एक गन्दी मछली पूरे तालाब को गन्दा कर देती है जो ज्ञान हम लोगों को देते है उसे अपने जीवन में भी लागू करें । लोगो से मिलना उनसे बाते करना सभी को अच्छे काम करने के लिए प्रेरित करना यह भी तो हमारा कर्तव्य है परन्तु न हम ऐसा करते हैं और न लोगों के पास इतना समय है। यह सब समय की ही तो माया है जो लोग अब एक दूसरे से भागने लगे है लोगों को यह पसंद ही नही कि कोई उनकी निजी ज़िंदगी में दखल दे लोगों को एक दूसरे की राय अब पसंद नही आती है । अब शहरीकरण और नवीनीकरण के दौर में लोग इतना डूब चुके है कि दूसरों कि समस्या कोई देखना नही चाहता परन्तु दुनिया में अभी भी न जाने कितने ऐसे लोग हैं जो इस बदलाव को नही अपना पाए हैं उन्हें अभी भी यही लगता है काश सब पहले जैसा ही हो। सब खुश रहे और कई लोग ऐसे भी हैं जिन्हें बस खुद से मतलब है बस फिर दुनिया जो मर्ज़ी कहे,।चाहे जो मर्जी बदल जाए पर लोग एक दूसरे की बातों पर विश्वास करना नही छोड़ सकते मतलब यह है की जब लोग किसी की बुराई करते हैं तो दूसरे उसपर जल्दी से विश्वास कर लेते हैं और जब बात किसी की अच्छाई की होती है तो हम लोग सोचने लग जाते है की यह सच है या नही वह आदमी दिखावा कर रहा होगा ऐसा क्यो है क्या वक़्त के साथ साथ हमारी मानसिकता भी बदल चुकी है? बहुत मुश्किल है किसी को उसके गुण के साथ अपनाना फिर चाहे हम खुद जैसे मर्ज़ी हो । हमे इतनी कोशिश तो करनी चाहिए की हम लोगों के बारे मे जब भी कोई बात करें कम से कम अपने अंदर झांक कर भी जरूर देखें। जब भी नकारात्मकता आप पर हावी होने लगे तब उन्हे याद करें जिन्हें आप सबसे ज्यादा प्यार करते हो जिन लोगों से बात करना आपको अच्छा लगता है जिन लोगों से मिलकर आप खुश रहते हैं जिनकी सलाह आपको अच्छी लगती है। ज़िंदगी में हमने काफी कुछ अनुभव किया होता है जो अच्छा भी होता है और बुरा भी, आपकी ज़िंदगी मे कई लोग ऐसे भी आये होंगे जिन्होंने आपको ऐसी सीख दी होगी जो आपके पूरे ज़िंदगी में आपके काम आयी होगी और कुछ अनुभव ऐसा भी होगा जिसने ताउम्र आपको दर्द दिया होगा। मैं ये नही कहती कि लोगो से नाकारात्मकता फैलती है या सकारात्मकता फैलती है मैं बस यही कहना चाहती हू दोनों ही चीज़े होती है बस चुनना होता है की आपको क्या चाहिए। क्युकी हम से लोग है और लोगो से संसार बस रास्ते आपको खुद चुनना है। 🙏